बदलते भारतीय समाज में महिला पुलिसकर्मियों की भूमिका: एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
प्राजक्ता आनंद1, निरूपमा सिंह2
1शोध छात्रा, समाजशास्त्र विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
2डी0 ए0 वी0 डिग्री कॉलेज, समाजशास्त्र विभाग, लखनऊ
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
बदलते भारतीय समाज में महिला पुलिसकर्मियों की भूमिका सुरक्षा और सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण आधार बन रही है। वर्तमान में महिला पुलिसकर्मियों का प्रतिशत 11-7 है, जो 33 प्रतिशत आरक्षण के लक्ष्य से काफी कम है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े दर्शाते हैं कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, जिससे महिला पुलिस बल की आवश्यकता और भी स्पष्ट हो जाती है। पुलिस बल में महिला पुलिसकर्मियों को पितृसत्तात्मक मानसिकता, लैंगिक भेदभाव, और कार्यस्थल पर सुविधाओं की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पुलिस प्रशासन में महिला सिपाहियो की संख्या अधिक होने के बावजूद उच्च पदों पर उनकी उपस्थिति निम्न है। शौचालय और अन्य बुनियादी सुविधाओं का अभाव उनके कार्यक्षेत्र को और कठिन बना देती है। महिला पुलिसकर्मियों की भागीदारी न केवल अपराधों की रोकथाम में मददगार साबित हो सकती है, बल्कि समाज महिलाओं में सुरक्षा की भावना भी जागृत कर सकती है। महिला पुलिस को प्रशिक्षण, बेहतर सुविधाएं, और समान अवसर देकर उनके योगदान को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके लिए सरकार और समाज को मिलकर पहल करनी होगी। राजस्थान में 33 प्रतिशत आरक्षण और उत्तर प्रदेश में पिंक बूथ जैसी सुविधाओं के लिए राज्य में उठाए गए साकारात्मक कदम अन्य राज्यों के लिए उदाहरण बन सकते हैं। महिला पुलिसकर्मियों की संख्या और उनकी भूमिका को बढ़ाने में महात्वपूर्ण साबित होगा। समाज में महिलाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने और महिला पुलिस की भूमिका को मजबूती से स्थापित करने की दिशा में यह प्रयास महत्वपूर्ण है।
KEYWORDS: महिला पुलिसकर्मी, लैंगिक समानता, पितृसत्तात्मक समाज, महिलाओं के विरुद्ध अपराध, लैंगिक संवेदनशीलता।
INTRODUCTION:
बदलते भारतीय समाज में महिला पुलिसकर्मियों की कमी महिलाओं की सुरक्षा की ओर एक नकारात्मक संकेत करता है जिस प्रकार महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ रहा है और वह महिला एक पुरुष पुलिसकर्मि से अपनी बात कहने में खुद को असहज महसूस करती है उसे देखते हुए लगता है कि पुलिस विभाग में महिला पुलिसकर्मियों की आवश्यकता कितनी तेजी से बढ़ रही हैं भारत में भले ही सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की पुलिस बल में 33 प्रतीशत आरक्षण देने की बात की हो लेकिन जमीनी आंकड़े कुछ और है। 2017 में महिला पुलिसकर्मियों का प्रतिनिधित्व 7.28 प्रतीशत पर बना हुआ है वहीं 2022 में महिला पुलिसकर्मियों का प्रतिशत राज्य पुलिस बल में केवल 11-7 प्रतीशत हैं जबकि कई राज्यों में 10 प्रतीशत से 33 प्रतीशत आरक्षण महिलाओं के लिए अनिवार्य हैं भारत मुख्य रूप से पुरुष प्रधान देश रहा है इसी प्रकार पुलिस बल में भी पुरुष का ही प्रभुत्व रहा था।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरोः (एनसीआरबी) के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध में यह पाया गया है कि 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज किये गए थे वहीं 2021 में 4,28,278 और 2022 में 4,45,256 मामले दर्ज हुए इसका मतलब यह हुआ कि हर घंटे 51 मामले दर्ज किये जा रहे है जो कि महिलाओं के विरूद्ध अपराध की बढ़ती संख्या को दर्शाते है ये एनसीआरबी के वो आकड़े है जो दर्ज किये गए हैं लेकिन आज भी न जाने ऐसे कितने केस है जो समाज के डर से दर्ज ही नहीं कराये जाते है महिलाएं यु ही घुट के अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं या तो समाज उन्हें इतना मजबूर कर देता है कि वो आत्महत्या कर लेती हैं इसलिए महिला पुलिस की आवश्यकता बढ़ती जा रही हैं ताकि महिलाएं उन्हें अपने जैसी ही एक महिला समझ कर अपनी बात कह सके इसीलिए महिला पुलिस, महिलाओं की सुरक्षा में एक अहम भूमिका निभा सकती है वही महिला सुरक्षा सूचकांक के अनुसार 2023 में भारत 128 पायदान पे खड़ा है जबकि देखा जाये तो 2018 से 2022 तक अपराध की दरों में 12.9 प्रतीशत की वृद्धि होती दिखाई पड़ रही है।
जहाँ पुलिस व्यवस्था में मर्दाना प्रथाएं, लोकाचार और नीतियाँ हावी रहती हैं ऐसा माना जाता है लैंगिक विचारधारायें सामाजिक और नैतिक मान्यताओं का समुच्चय में महिलाओं को लंबे समय तक इस क्षेत्र से दरकिनार किया है कि महिलाओं को इस क्षेत्र में बोझ समझा जाता था उनमें किसी भी अपराध से लड़ने की क्षमताओं व कौशल का आभाव पाया जाता था लोगों की इस मानसिकता ने महिलाओं को पुलिस बल में अपना कार्य चुनने से दूर रखा लेकिन इस बदलते समाज में महिलाओं ने अपनी अंतर्निहित संभावित ताकत को तकनीकी कौशल व अधिग्रहण और शैक्षिक अवसरों के आधार पर पहचानना शुरू कर दिया है।
महिला पुलिस का ऐतिहासिक स्वरूपः
पश्चिम देशों के विद्वानों का मानना है कि लैटिन भाषा के शब्द ‘पोलिटिया‘ से पुलिस शब्द की उत्पत्ति हुई जिसका अर्थ है कि नागरिक शासन। पुलिस शब्द की उत्पत्ति पोलिटिया से हुई है यह केवल पश्चिमी देशों के भाषाविद और समाजशास्त्रीय का मनाना है, जबकि भारतीयो का मनाना है कि पाली भाषा के ‘पुन्निस‘ से पुलिस शब्द की उत्पत्ति हुई जिसका अर्थ नगर रक्षक होता है। प्रत्येक समाज में नियम व आदर्शों के अनुकूल व्यवहार को सामान्य व्यवहार माना जाता है और इन नियमों के विरुद्ध किये गये व्यवहार को असामान्य तथा सामाजिक दृष्टि से किये गये असामान्य व्यवहार को समाज विरोधी व अपराध माना जाता है और उन्हें रोकने के लिए पुलिस प्रशासन जैसे कुछ खास प्रणाली तंत्र का निर्माण किया गया है। विश्वकर्मा, ए. (2009)
भारत में केरल राज्य एक ऐसा राज्य है जहां सबसे पहले पुलिस बल में महिलाओं को शामिल किया गया वहीं पहली महिला पुलिस 1933 में तत्कालीन ट्रावन्कोर रॉयल पुलिस बल में शामिल किया गया। वर्ष 1981 में राष्ट्रीय पुलिस आयोग की आठवीं रिपोर्ट के अनुसार था तो प्रदेश में महिला पुलिस की संख्या केवल 3000 थी जो कि कुल पुलिस बल का केवल 0.4 प्रतिशत था। वहीं 2012 में दिल्ली जैसे बड़े केंद्र शासित प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा तथा उनके रोजमर्रा के जीवन में बढ़ते अनेक खतरे महिलाओं की सुरक्षा हेतु महिला पुलिस की आवश्यकता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित की वही बात करें भारत कि प्रथम महिला आई0 पी0 एस0 अधिकारी कि तो 1972 में किरण बेदी जो वर्तमान में पुदुचेरी की राज्यपाल हैं।
पुलिस बल में कुल पुलिसकर्मियों की संख्या 17,22,786 थी और महिला पुलिसकर्मियों कि संख्या 1,05,325 थी कुल पुलिस बल में केवल 6.11 प्रतिशत महिला पुलिस की भागीदारी है जो महिला पुलिसकर्मियों की कमी को दर्शाती हैं 2022 में देखा जाए तो महिला पुलिसकर्मियों कि प्रतिशत बढ़कर 11.75 प्रतीशत हो गया है लेकिन यह भी 33 प्रतिशत के लक्ष्य को नहीं पा सका हैं। अगर आरक्षण कि बात करें तो बिहार और तेलंगाना जैसे राज्य में 35 प्रतीशत सबसे अधिक आरक्षण दिया गया है और सबसे कम उत्तराखंड में केवल 15 प्रतीशत आरक्षण दिया गया है। सिंह, एम. (2022)
नारीवादी पहलूः
नारीवादी शब्द पहली बार फ्रांसिसी दार्शनिक चार्ल्स फुरियर 1837 में दिए जो कि एक फेमिनिज्म के रूप में था जिसका मतलब होता है कि स्त्री गुण या चरित्र आज के समय में उसका अर्थ बदल गया है भारत में प्रथम नारीवादी सावित्रीबाई फुले हैं उन्हें भारतीय नारीवादी की जननी भी कहा जाता हैं उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए बहुत लड़ाई लड़ी और ‘महिला सेवा मंडल’नामक एक संस्था कि स्थापना की जहां महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए जागरूक किया जा सके दार्शनशास्त्री इविलिन फॉक्स कैलर ने अपनी पुस्तक ‘रिफ्लेक्शन ऑन जेंडर साइन्स’1985 में लिखा कि प्रकृति विज्ञान किस तरह से पुरुषवादी सोच में खुद को फसाये हुए थे लेकिन किस तरह नारीवादी की जांच से इन विज्ञानों में परिवर्तन आ रहा है।
घोष 1981 के अनुसार एक महिला पुलिसकर्मी के रूप में उसकी भूमिका की व्याख्या करते समय एक महिला को क्या काम करना चाहिए और एक पुलिसकर्मी के रूप में वह क्या प्रदर्शन करती है यह एक महत्त्वपूर्ण चर्चा का विषय है जिसे हम भूमिका संघर्ष का नाम देते हैं जो कि किसी भी महिला पुलिस के कार्यस्थल पर उसके कार्य में भूमिका तनाव उत्पन्न करता है भूमिका संघर्ष को सबसे पहले मर्टन ने दिया था उनके अनुसार भूमिका संघर्ष वह है जहां भूमिका सेट को समझने के लिए असंगत अपेक्षाएं रखी जाती हैं जहां पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों और महिलाओं के बीच कार्य का विभाजन होता है वहां ऐसे ‘कार्य के लैंगिक विभाजन‘ के अनुसार पुरुषों को भरण पोषण करने वाला माना जाता है वही महिलाओं को घर पर खाना बनाना व बच्चों का पालन पोषण करने वाला माना जाता है, वही पुलिस बल की छवि शुरू से ही मर्दाना और वीरता के रूप में बताई गई है जहां महिलाओं को भूमिका संघर्ष का सामना करना पड़ता है और वही एक पुरुष पुलिसकर्मी की अपेक्षा महिला पुलिसकर्मी के सम्मान में भी गिरावत देखने को मिलती है साथ ही उनको पदोन्नति के अवसर में भी गिरावत देखने को मिलता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरोः महिलाओं के विरुद्ध अपराधः
महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों का कारण मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक समाज माना जाता है जहां महिलाओं को कमजोर वर्ग समझ कर उन पर तेजाब फेंकना, अपहरण, छेड़छाड, बलात्कार व सामूहिक बलात्कार, हत्या जैसे वारदातों को अंजाम दिया जाता है इस बदलते भारतीय समाज में जहां महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए सरकार इतने प्रयास कर रही है लेकिन वही हमारे समाज में और ज्यादा महिलाओं की स्थिति खराब होती दिखाई दे रही है जहां महिलाएं पहले से ज्यादा अपने अधिकार के लिए जागरूक हो रही हैं अपने कैरियर में आगे बढ़ कर पुलिस बल में खुद को सम्मिलित कर रही हैं वही हमारे समाज में कुछ दकियानूसी सोच वाले लोग भी बैठे हैं जो उनके बढ़ते कदमों को अपने लिए एक मौके के रूप में लेते हैं और वारदातों को अंजाम देते हैं जिनसे समाज में नकारात्मकता फैल रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2022 में 4,45,256 मामले दर्ज किये गये जो कि 2021 और 2020 की तुलना में 2022 क्रमवार पांच राज्यों में पश्चिम बंगाल (1890), गुजरात (1452), बिहार (812), केरल (759), तमिलनाडु (736) है वही देखा जाए तो सबसे अधिक अपराध तो महिलाओं के साथ उनके स्वयं के परिवार वाले पति या उनके अपने रिश्तेदार करते हैं जो कि 31.4 प्रतीशत है जबकि महिलाओं के अपहरण 19.2 प्रतीशत है और महिलाओं के उनके शीलभंग के इरादे से किये गए अपराध 18.7 प्रतीशत है और बलात्कार 7.1 प्रतीशत के मामले दर्ज किये गए हैं।
पुलिसबल में महिला पुलिस की भागीदारीः
महिलाओं को 33 प्रतीशत आरक्षण मिलने के बाद भी उनकी वर्तमान भागीदारी पुलिस बल में केवल 7.28 प्रतीशत ही है जो पुरुष पुलिसकर्मियों की तुलना में बहुत ही कम है जहां आज भी थानों में पुरुष पुलिसकर्मी कि संख्या अत्यधिक है जहां महिलाएं अपनी बात रख पाने में सक्षम नहीं है इसी कारण पुरुष पुलिसकर्मियों उन्हें तवज्जो नहीं देते है लेकिन वही संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के प्रति किसी भी प्रकार के हिंसा को मद्देनजर रखते हुए यह कहा गया है कि कोई भी इंसान हो शारीरिक, मानसिक हो या फिर यौन संबंधी या चेतना को भी लिंग आधारित हिंसा के रूप में माना जाएगा और इसके लिए विशेष प्रकार से महिला पुलिस की आवश्यकता है
आज भी भारत के कई राज्यों में प्रशिक्षण की आवश्यकता है जबकी महिलाओं के लिए महिला हेल्पलाइन नंबर 1090, इव टीजिंग सेल जैसी चीजें संचलित हो रही है लेकिन इतना पर्याप्त नहीं होगा साथ ही महिला पुलिसकर्मियों की कमी को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए एकजुट होकर पहल व प्रयास करने से इस अंतर को पाटने की कोशिश करनी चाहिए समाज में प्रतीकात्मक व संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता है जिससे महिलाओं के प्रति होने वाले हिंसा में भी कमी आयेगी। पुलिस बल में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ा के उसे अधिक जवाबदेही बनाया जाना चाहिए साथ ही उच्च पदों से लेकर निम्न पदों तक महिला पुलिस की नियुक्ति अत्यधिक जरूरी है। प्रत्येक थाने में महिला पुलिसकर्मि को सुनिश्चित किया जाना चाहिए इन सुविधाओं के होने से एक महिला पीड़ित अपना पक्ष खुलकर रख सकती हैं।
भारतीय समाज में महिला पुलिसकर्मियों की सामाजिक व आर्थिक स्थितिः
समाज में महिलाएं अहम भूमिका निभाती हैं प्राचीन काल में लोगों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति व्यवसाय के तौर पर देखी जाती थी जहां पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र जैसे वर्णों में बाटे जाते थे। इसलिए कमजोर वर्ग के लोगों को शूद्र कहा जाता था, वैसे देखा जाए तो प्रत्येक समाज में शक्तिशाली व कमजोर वर्ग के लोग होते हैं लेकिन भारतीय समाज में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं महिलाओं को कमजोर वर्ग का माना जाता है अतः भारत जैसे देश में शक्तिशाली वर्ग कमजोर वर्ग का शोषण करते चले आये हैं। इसलिए कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति दिखाने की आवश्यकता है इस बात का समर्थन हमारा संविधान भी करता है कि कमजोर वर्ग और पिछड़ा वर्ग का उत्थान किया जाना चाहिए। जिसके लिए अनुच्छेद 338 (अ) के तहत अनुसूचित जाति व 338 (ब) के तहत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (ओबीसी) का गठन किया वही अनुच्छेद 16 खंड (6) के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (इ डब्लू एस) हेतु 10 आरक्षण कि बात कि गयी हैं। सामान्य अध्ययन भारतीय राज्यव्यवस्था 2024,पी पी 239
आधुनिक समाज में पुलिस बल में पुलिस की आर्थिक स्थिति उसके पद के अनुसार होती है उच्च पद से लेकर निम्न पद तक उनके वेतनमान अलग-अलग होते हैं जिसके कारण उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी अलग-अलग होती है प्रत्येक महिला पुलिसकर्मी की आर्थिक स्थिति केवल उनके वेतनमान से नहीं बल्की उनके परिवार के विभिन्न प्रकार के भौतिक सुख सुविधाओं से भी मुल्यंकित किया जा सकता है प्रत्येक महिला पुलिसकर्मी थाने, चौकी, कोतवाली में कार्यरत रहते हैं उनके आय के स्रोत भी अलग-अलग होते हैं व जिस क्षेत्र में पद पर कार्य करते हैं अतिरिक्त आय व अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं यह भी उनकी आर्थिक स्थिति को बताता हैै।
पुलिस बल में कार्यरत प्रत्येक पुलिसकर्मी समाज का एक अंग है जो समाज के सभी लोकाचार को अपनाते हुए कर्तव्य का पालन करता है परंतु जीवन में उतार चढ़ाव व परिवार के अनियंत्रित खर्चे तथा उस पर परिवार के विभिन्न प्रकार के उत्तरदायित्व होने के कारण उसके मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार के लालच व प्रलोभन उत्पन्न होने लगते हैं जिसका कारण वह कभी-कभी अपने कर्तव्य और निष्ठा के प्रति भटक जाता है और इस कारण उसकी छवि खराब होती है और कहीं न कहीं किसी भी व्यक्ति कि आर्थिक स्थिति उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ी होती है, वर्तमान समय में लोगों के मन में ऐसी धारणा बनी हुई है जिस व्यक्ति के पास जितना अधिक धन है समाज में उसका उतना ही आदर सम्मान है पुराणों में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि धन ही सर्वश्रेष्ठ है धन रहित व्यक्ति का हमारे समाज में कोई अस्तित्व नहीं होता है इसलिये व्यक्ति धन एकत्रित करने के लिए तरह-तरह के प्रयास करता है वर्तमान में किसी भी व्यक्ति का आर्थिक स्तर उसके सामाजिक परिवेश में सामाजिक जीवन के निर्धारण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आगे की राहः
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) के अनुसार महिलाओं को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। जिसके लिए उन्हें सरकारी कार्यालयों में साफ पानी, स्वच्छ शौचालय और सैनिटरी पैड जैसी सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए और वही महिला पुलिसकर्मियों को भी इन विषयों के बारे में अवगत करना होगा क्योंकि पुलिस बल में महिलाएं सबसे अधिक सिपाही पद पर ही भर्ती होती हैं जिसके कारण वह अपने अधिकारों के बारे में ज्यादा जागरूक नहीं होती हैं वही पुलिस अकादमी में एजुकेशनल ट्रेनिंग देने वाले अधिकारियों को ट्रेनिंग के दौरान कुछ ऐसी कक्षाएँ देनी चाहिए जिसमें ‘लैंगिक संवेदनशीलता’ जैसे अवधारणा को समझाया जाए जिससे थाने में एक ऐसा माहौल उत्पन्न हो पाए जहां महिला पुलिसकर्मी अपनी तकलीफों को खुलकर बता सकें महिला पुलिसकर्मियों को कार्य के दौरान जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है उसके लिए एक ‘निवारण पेटी‘ जैसी सुविधाएं हर पुलिस स्टेशन में स्थापित करानी चाहिए जिससे महिला पुलिसकर्मी अपनी बात गोपनीय रूप से बताये साथ ही एक ‘निरीक्षण परिषद‘ का गठन भी करना चाहिए जो कि समय-समय पर इसका निरीक्षण करते रहें। सामान्य अध्ययन भारतीय राज्यव्यवस्था 2024,पी पी 60
2011 ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेन्ट ने सिफारिश कि महिला तथा पुरुषों में जो भी जैविक अंतर है अगर उसका ध्यान रखते हुए एक ‘प्रिफरेंशिअल ट्रीटमेंट‘ दिया जाए तो वे अपना कार्य पूरी निष्ठा से कर सकती हैं इसके लिए प्रशासन को थाने में महिला पुलिसकर्मियों के लिए डिस्पेंसरी, नर्सिंग रूम और शौचालय जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने होंगे और अनियमित माहवारी जो कि कभी-कभी हार्मोनल इम्बैलेंस के कारण हो जाती है उसके लिए शर्मिंदगी व उत्पीड़न का शिकार न होना पड़े साथ ही महिला पुलिसकर्मियों के लिए वैकल्पिक यूनिफोर्म का प्रावधान करना चाहिए, वहीं 2011 में किए गए इस सिफारिश को आज तक पुलिस प्रशासन ने लागू नहीं किया है।
आलोचनात्मक बिंदुः
डॉ० उपासना शर्मा (2014) के अनुसार महिलाओं पर प्राचीन समय से ही अत्याचार होता आया है आज के समय में केवल उसका स्वरूप बदला है न कि खत्म हुआ है प्राचीन समय से लेकर आज तक महिलाओं का विषय विवादास्पद रहा है समय प्राचीन हो या आधुनिक लेकिन हमारा समाज पुरुष प्रधान ही रहा है इसलिये महिलाएं जिन सम्मान व उपलब्धियों की हकदार थी वह उन्हें आज तक नहीं मिला है और महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते अपराध के कारण महिलाएं न घर के बाहर सुरक्षित हैं और न ही घर में, बाहर काम करने के कारण उन्होंने अपना दायरा तो बढ़ाया लेकिन कहीं न कहीं इसके वजह से अपराध का दायरा भी बढ़ा है उसकी वजह से सरकार ने इसे निपटने के लिए बहुत से कानून भी बनाए जिससे इन अपराधों को रोका जा सके लेकिन फिर भी सरकार पूरी तरह से विफल हो रही है इन होने वाले अपराधों को रोकने में न तो सरकार को सफलता मिल रही न ही पुलिस प्रशासन को, यही कारण है कि महिला पुलिसकर्मियों की आवश्यकता बढ़ती जा रही हैं।
कहीं न कहीं सरकार 2024 पुलिस भर्ती में 60,000 सीटो पर 12000 सीटें 20 प्रतीशत महिलाओं के लिए आरक्षित की है सरकार का यह कदम महिला सुरक्षा की ओर है लेकिन वह स्वयं की रक्षा व समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ है बीते कुछ वर्षों में देखा गया कि महिला पुलिस के अपने पुरुष पुलिस सहकर्मियों की ओर से भेदभाव व शोषण जैसी घटनाएँ देखने को मिली है, पितृसत्तात्मक समाज ने आज भी महिलाओं को पुलिस में स्वीकार नहीं किया गया है क्योंकि पुलिस बल को हमारा समाज एक पुरुष वर्चस्व क्षेत्र मानता है महिलाओं को पितृसत्तात्मक समाज आज भी पुलिस बल में शामिल होने योग्य नहीं समझता है इसका करण कहीं न कहीं पुरुष सहकर्मियों का भेदभावपूर्ण रवैया महिलाओं के मनोबल को तोड़ता है जिसके वजह से महिलाओं को हर कदम पर यह साबित करने की जरूरत पड़ती है कि वह पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल सकतीं है महिला पुलिसकर्मी समाज में अपनी स्वीकृति के लिए निरंतर प्रयास कर रही हैं महिलाओं को हर जगह कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है फिर वह भावनात्मक स्तर पर हो या पारिवारिक स्तर पर हो या सामाजिक स्तर पर हो महिलाओं का जीवन अत्यधिक संघर्ष पूर्ण है।
वही हाल ही में राजस्थान सरकार अपने कदम बढ़ाते हुए पुलिस बल में महिलाओं के लिए 33 प्रतीशत आरक्षण को मंजूरी देते हुए यह कहा है कि पुलिस बल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा तो प्रदेश में महिलाओं के आपराधिक मामलों में कमी आएगी इसी के साथ देखा जाए तो उत्तर प्रदेश की सरकार भी महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए पिंक बूथ जैसी सुविधाएं लाई हैं जहां केवल महिला पुलिस बल तैनात रहती हैं और उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में इसकी संख्या सबसे अधिक देखी जा सकती है ।
निष्कर्षः
इस बदलते भारतीय समाज में महिला पुलिस कर्मियों की स्थिति में सकारात्मक व नकारात्मक बदलाव दोनों ही देखने को मिले हैं जहां महिलाएं केवल घर तक सीमित थी वह आज पुलिस बल जैसे पुरुष वर्चस्व वाले क्षेत्र में जा रही हैं और अपने ही जैसे अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रही हैं उनकी समस्याओं का समाधान कर रही है साथ ही महिला पुलिस की संख्या बढ़ने से महिलाओं के प्रति होने वाली अपराधिक गतिविधियों में भी कमी आ रही है, साथ ही अन्य मामलों में भी वह अपना योगदान दे रही हैं इसलिए समाज को भी उनका सहयोग करना चाहिए ड्यूटी करते समय कार्यस्थल पर उनके सामने भी चुनौतियाँ आती हैं जिसका उन्हें सामना करना पड़ता है जिसमें सबसे बड़ी चुनौती शौचालय की होती है क्योंकि पुलिस बल में थानों का जो ढाँचा है वह पुरुषों के अनुरूप बनाया गया है जहां महिलाओं के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं होती है इसलिए सरकार को चाहिए कि सभी थानों में महिलाओं के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था करायें ,साथ ही पुरुष पुलिसकर्मियों की संख्या सभी थाने में अधिक होती हैं और वह ज्यादातर ग्रामीण इलाके से आये होते हैं जिनके कारण उनकी सोच पितृसत्तात्मक होती है और भाषा अभद्र होती है जिसके कारण महिला पुलिसकर्मियों को कार्यस्थल पर नकारात्मक सोच, लिंग भेद व पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है इसके लिए पुलिस बल के प्रशिक्षण संस्थानों में ऐसे पाठ का भी आयोजन करना चाहिए पुरुषों और महिलाओं दोनों को एक दूसरे के प्रति सम्मान करना सिखाया जाये।
भारत जैसे आजाद देश में भी महिलाएं अपने आप को कैद महसूस कर रही हैं इसका कारण कहीं ना कहीं हमारा पितृसत्तात्मक समाज है और यही कारण है शायद जो अभी भी पुलिस बल में 7.28 प्रतिशत ही महिलाएँ शामिल हो रही हैं उनमें से भी 99 प्रतीशत महिलाएँ सिपाही जैसे निम्नपदो पर शामिल हो रही है केवल 1 प्रतिशत ही उच्च पदों तक पहुंच पाती हैं । इसलिए प्रशिक्षण संस्थानों को मजबूत बनाना पड़ेगा और साथ ही महिला पुलिसकर्मी के लिए अधिक अवसर प्रदान करना पड़ेगा तथा समाज में महिलाएँ पुलिसकर्मी के प्रति लोगों के मन में जागरूकता पैदा करना पड़ेगा ताकि बढ़-चढ़ कर महिलाएँ आगे आकर पुलिस बल में शामिल हो इसके लिए राजस्थान सरकार ने सकारात्मक कदम उठाया है जहां पुलिस बल में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देते हुए महिलाओं को पुलिस बल के प्रति आकर्षित कर रही है ताकि वह बढ़-चढ़ कर पुलिस बल में शामिल हो, वहीं समाज में महिला पुलिस के प्रति लोगों को उजागर करने के लिए जागरूकता अभियान व शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए साथ ही महिला पुलिस की उपलब्धियों को मीडिया व समाचार पत्रों में प्रदर्शित करना चाहिए ताकि समाज में उनके प्रति जागरूकता बढ़े और पुलिस बल को सहयोग करने वाली संस्थानों व संगठनों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वह भी महिला पुलिस को सहयोग व समर्थन प्रदान कर सकें।
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Received on 23.11.2024 Revised on 03.03.2025 Accepted on 26.04.2025 Published on 05.06.2025 Available online from June 10, 2025 Int. J. of Reviews and Res. in Social Sci. 2025; 13(2):75-81. DOI: 10.52711/2454-2687.2025.00013 ©A and V Publications All right reserved
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